औषधीय पौधों के संरक्षण हेतु गरियाबंद में वैद्यराजों को मिला प्रशिक्षण

 

परंपरागत ज्ञान को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का संकल्प, वन विभाग और ग्रीन कैनोपी इंडिया की संयुक्त पहल

गरियाबंद। विलुप्तप्राय औषधीय पौधों की प्रजातियों को संरक्षित करने और उनके संवर्धन के लिए छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में एक सराहनीय पहल की गई है। वन विभाग और ग्रीन कैनोपी इंडिया संस्था के संयुक्त तत्वावधान में जिलेभर के 120 से अधिक वैद्यराजों को एकदिवसीय प्रशिक्षण प्रदान किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य औषधीय पौधों के विनाश-विहीन दोहन, टिकाऊ संरक्षण तथा पारंपरिक ज्ञान को अगली पीढ़ी तक हस्तांतरित करना रहा।

प्रशिक्षण कार्यक्रम में गरियाबंद के दूरस्थ अंचलों से पहुंचे अनुभवी वैद्यराजों ने भाग लिया। उन्होंने अपने क्षेत्र से लाई गई औषधीय पौधों की प्रजातियों का रोपण वन विभाग की नर्सरी में किया। प्रशिक्षण में जड़ी-बूटियों की पहचान, रखरखाव और सही मात्रा में उपयोग जैसे विषयों पर विशेषज्ञ मार्गदर्शन मिला।

 

विषय विशेषज्ञ डॉ. राजेंद्र प्रसाद मिश्र ने औषधीय पौधों के अनियंत्रित दोहन से होने वाले नुकसान के बारे में बताया और टिकाऊ उपयोग की तकनीकों से अवगत कराया। उन्होंने कहा, “यदि आज हमने इन पौधों की सुरक्षा नहीं की, तो भविष्य में यह औषधीय धरोहर विलुप्त हो सकती है।”

पारंपरिक ज्ञान का दस्तावेजीकरण ज़रूरी

कार्यक्रम में वरिष्ठ वैद्यराजों ने भी अपने बहुमूल्य अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि कौन-से पौधे किस बीमारी में उपयोगी हैं और उनकी पारंपरिक निर्माण विधियों के बारे में जानकारी दी। कई वैद्यराजों ने यह भी बताया कि कुछ बीमारियों का इलाज केवल परंपरागत जड़ी-बूटियों से ही संभव है, जहां एलोपैथी असफल हो जाती है।

 

वन विभाग और ग्रीन कैनोपी की पहल

उदंती-सीता नदी टाइगर रिजर्व के उपसंचालक वरुण जैन ने कहा, “औषधीय पौधे केवल जंगल की संपदा नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और स्वास्थ्य परंपरा का भी हिस्सा हैं। इस प्रशिक्षण के माध्यम से हम वैद्यराजों को सशक्त बनाकर इस ज्ञान को नई पीढ़ी तक पहुंचाना चाहते हैं।”

 

उपवन मंडल अधिकारी मनोज चंद्राकर ने जानकारी दी कि वन विभाग औषधीय पौधों के संरक्षण के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि स्थानीय समुदायों को इस दिशा में जागरूक कर संरक्षण को जन आंदोलन बनाया जाएगा।

 

ग्रीन कैनोपी इंडिया की प्रतिनिधि देवयानी शर्मा ने कहा, “हमारा संगठन पारंपरिक औषधीय ज्ञान को संरक्षित करने और वैज्ञानिक शोध के माध्यम से इसे और प्रभावी बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। वैद्यराजों का यह ज्ञान अनमोल धरोहर है, जिसे सहेजना जरूरी है।”

 

स्थानीय वैद्यराजों का उत्साह

छूरा क्षेत्र के वरिष्ठ वैद्यराज ईश्वर सिंह ने कहा, “हमारे पूर्वजों से मिली जड़ी-बूटी की विधाएं आज भी उपयोगी हैं, लेकिन इनके संरक्षण की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है। इस प्रशिक्षण से हमें नई जानकारी और आधुनिक दृष्टिकोण मिला, जो भविष्य में हमारे कार्य को और भी उपयोगी बनाएगा।”

 

इस अवसर पर यह भी निर्णय लिया गया कि औषधीय पौधों के संरक्षण के लिए स्थानीय समुदायों को प्रशिक्षित व प्रोत्साहित किया जाएगा। वन विभाग और ग्रीन कैनोपी इंडिया मिलकर इस दिशा में दीर्घकालिक योजनाएं तैयार कर रहे हैं।

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