फॉरेस्ट गार्ड ने गुम होने पर लोहार से बनवा लिया डुप्लीकेट, अफसरों की मिलीभगत से मामला दबाने की कोशिश

गरियाबंद वन मंडल में बीट हैमर घोटाला!

 

 

छुरा। गरियाबंद वन मंडल के गरियाबंद परिक्षेत्र में विभागीय लापरवाही और मिलीभगत का बड़ा मामला सामने आया है। यहां बीट हैमर (Beat Hammer) गुम हो जाने के बाद फॉरेस्ट गार्ड ने विभाग को बताए बिना सीधे लोहार से डुप्लीकेट हैमर बनवा लिया। और हैरत की बात यह है कि इस गंभीर घटना को रेंजर, एसडीओ और डीएफओ तक दबाने में लगे रहे।

 

सूत्रों के मुताबिक, वन मंडल के वार्षिक निरीक्षण के दौरान सभी बीट हैमर जमा कराए गए, तब खुलासा हुआ कि फॉरेस्ट गार्ड अजय चेलक द्वारा जमा किया गया हैमर संदिग्ध है। परिक्षेत्र अधिकारी नदीम बरिया ने इसकी जानकारी एसडीओ मनोज चंद्राकर को दी। जब जांच हुई तो साफ हो गया कि अजय चेलक का बीट हैमर असली नहीं बल्कि बाजार के लोहार से बनवाया गया डुप्लीकेट है।

 

पूर्व बीट गार्ड को बुलाकर पूछताछ में भी यह साफ हो गया कि यह बीट हैमर पहले का नहीं है। बाद में दबाव पड़ने पर अजय चेलक ने एक महीने बाद अपनी गलती मान ली और कबूल किया कि असली हैमर गुम हो जाने पर उसने किसी को बताए बिना ही नया बनवा लिया।

 

जून महीने में जांच रिपोर्ट डीएफओ लक्ष्मण सिंह को सौंप दी गई थी, मगर हैरत की बात है कि दो महीने बीत जाने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। विभागीय अफसरों की चुप्पी ने संदेह और गहरा कर दिया है।

 

संवाददाता से बातचीत में डीएफओ का चौंकाने वाला बयान

 

हमारे संवाददाता ने जब गरियाबंद डीएफओ लक्ष्मण सिंह से इस मामले पर सवाल किया तो पहले उन्होंने माना कि बीट हैमर गुम हुआ है, लेकिन इसे “कोई बड़ा इशू” नहीं बताया। जब उनसे डुप्लीकेट हैमर पर सवाल किया गया तो उन्होंने इसे अपराध तो माना, लेकिन यह भी कहा कि “यह कोई बड़ा अपराध नहीं है”। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि इसकी जानकारी उच्च कार्यालय को भेजने की कोई जरूरत नहीं है।

 

क्यों है गंभीर मामला?

 

गौरतलब है कि बीट हैमर वन विभाग का सबसे अहम सरकारी औजार है। इससे लकड़ी, बल्ली, बांस आदि पर सरकारी हथौड़ा निशान लगाया जाता है, जो इस बात का प्रमाण होता है कि लकड़ी वैध और विभाग द्वारा अनुमोदित है।

अगर यह औजार गलत हाथों में चला जाए तो—

 

अवैध लकड़ी को वैध साबित किया जा सकता है

 

रेत व लकड़ी तस्करी को बढ़ावा मिलेगा

 

भ्रष्टाचार और अवैध कटाई को बढ़ावा मिलेगा

 

कर्मचारी और अफसर पर लापरवाही व आपराधिक जिम्मेदारी बनती है

 

नियम के मुताबिक एफआईआर दर्ज कर उच्च कार्यालय को सूचना देना अनिवार्य है

 

 

सवालों के घेरे में विभाग

 

मगर, गरियाबंद में नियम-कायदे से ज्यादा “जंगल राज” चलता दिख रहा है। डीएफओ साहब की नजर में यह कोई बड़ा अपराध नहीं है। अब बड़ा सवाल यह है कि—

 

आखिर दोषी फॉरेस्ट गार्ड पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?

 

जांच रिपोर्ट मिलने के बावजूद फाइल क्यों दबाई गई?

 

क्या अफसर कर्मचारी को बचा रहे हैं?

 

क्या गुम हुआ असली बीट हैमर किसी गलत हाथ में पहुंच चुका है?

 

 

जनता और विभागीय हलकों में यही चर्चा है कि इस पूरे मामले की जांच उच्चस्तर पर हो और दोषी कर्मचारियों-अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई की जाए। वरना बीट हैमर का यह काला खेल अवैध कटाई और तस्करी को बढ़ावा देगा।

 

 

 

इस संबंध में एस.डी.ओ. मनोज चंद्राकर से बात करने पर उन्होंने बताया कि गरियाबंद रेंज ऑफिसर नदीम बरिहा द्वारा जून माह में मुझे इस संबंध में जानकारी दी गई। तब मैंने तुरंत जांच की तो अजय चेलक द्वारा मना किया गया। फिर पहले के बीट गार्ड को बुलाकर पूछा गया, तो उनके द्वारा भी बताया गया कि यह वहा बीट हैमर नहीं है। जो पहले था इसके बाद जांच की गई तो अजय चेलक द्वारा गलत तरीके से कूट रचित कर हैमर लोहार से बनवाना पाया गया। जिसकी जांच रिपोर्ट मेरे द्वारा डी.एफ.ओ. सर को प्रस्तुत की गई है। आगे क्या कार्यवाही हुई, इसकी जानकारी मुझे नहीं है क्योंकि मेरा तबादला देवभोग उपमंडल कार्यालय हो गया है।

 

 

“इस सम्बन्ध में तत्कालीन एसडीओ राकेश चौबे से जानकारी लेने पर उन्होंने कहा कि मैं अभी नया आया हूँ, फाइल देखने के बाद ही बता पाऊँगा कि मामला क्या है।”

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